नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के वडोद गांव में हुए दंगा मामले में गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए छह लोगों को बरी कर दिया। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि बलात्कार के मामलों में अदालतों का यह कर्तव्य है कि वे सुनिश्चित करें कि किसी भी प्रत्यक्षदर्शी को दोषी न ठहराया जाए और उसकी स्वतंत्रता न छीनी जाए। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही यह बहुत कठिन हो। पीठ ने कहा कि दंगों के मामलों में अदालतों को इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसे गवाहों की गवाही पर भरोसा न करें जिन्होंने अभियुक्तों या उनकी भूमिकाओं का विशेष संदर्भ दिए बिना सामान्य बयान दिए हों। दरअसल, वडोद गांव में हुए दंगे के मामले में ट्रायल कोर्ट ने छह लोगों को दोषी ठहराया था और 12 अन्य को बरी कर दिया था। इसके बाद मामला गुजरात हाईकोर्ट पहुंचा, जिसने निचली अदालत के आदेश को पलट दिया और अब सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई बार जब सार्वजनिक रूप से कोई अपराध होता है, तो लोग घटना को देखने के लिए उत्सुकता से अपने घरों से बाहर निकल आते हैं और ऐसे लोग महज दर्शक बनकर रह जाते हैं। हालांकि, गवाहों के लिए ऐसे लोग दंगाइयों का हिस्सा हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में, जहां रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य से यह स्पष्ट हो कि बड़ी संख्या में लोग वहां उपस्थित थे, केवल उन व्यक्तियों को दोषी ठहराना सुरक्षित हो सकता है जो सीधे तौर पर उन कृत्यों के आरोपी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता उसी गांव का निवासी था जहां दंगे हुए थे। ऐसी स्थिति में उनका घटनास्थल पर होना स्वाभाविक है और यह अपराध का सबूत नहीं है। बता दें, 27 फरवरी 2022 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद राज्य में दंगे भड़क उठे थे।