नई दिल्ली। एक राष्ट्र-एक चुनाव’ बिल आज लोकसभा में पेश किया गया। इस विधेयक को संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024 नाम दिया गया है। जैसे ही केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस बिल को सदन में पेश किया, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों ने जोरदार हंगामा किया। वहीं, नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी ने बिल का समर्थन किया।
भारी हंगामे के बीच लोकसभा में इस बिल पर वोटिंग शुरू हुई। बिल के पक्ष में 220 और विपक्ष में 149 वोट पड़े, जबकि कुल 369 सदस्यों ने वोट किया। इस बिल के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग हो रही थी तो विपक्ष ने आपत्ति जताई। इसे लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अगर आपको कोई आपत्ति है तो आप पर्ची देकर वोट कर सकते हैं।
वहीं, वोटिंग से पहले विपक्ष के हंगामे के बीच कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने का प्रस्ताव रखा।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष को शांत करते हुए कहा कि इस बिल पर एक संयुक्त संसदीय समिति बनाई जाएगी। इसमें सभी दलों के सदस्य होंगे और इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा होगी। इस बिल के आने से पहले पर्याप्त समय दिया जाएगा, आप जितने दिन चाहें चर्चा कर सकते हैं।
शिवसेना (शिंदे गुट) सांसद श्रीकांत शिंदे ने एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक का समर्थन किया है। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस को किसी भी सुधार से नफरत है.’ इस बयान के बाद विपक्ष ने जमकर हंगामा किया।
एनसीपी (शरद पवार गुट) सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि एक देश, एक चुनाव बिल संविधान विरोधी है। आप चुनाव आयोग को विधानसभा भंग कर चुनाव कराने का अधिकार दे रहे हैं। इस विधेयक को समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाना चाहिए।
कांग्रेस ने आज सुबह आपात बैठक बुलाई। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान को खत्म करने की साजिश है। शिवसेना (उद्धव गुट) सांसद अनिल देसाई ने भी इस बिल को संघीय ढांचे पर हमला बताया। इंडियन मुस्लिम लीग के सांसद ईटी. मोहम्मद बशीर ने इस बिल का विरोध किया।
तृणमूल कांग्रेस सांसद कल्याण बनर्जी ने विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया। उन्होंने कहा कि संसद के पास कानून बनाने का अधिकार है। राज्य विधानसभाओं को भी ऐसा अधिकार है, लेकिन इस तरह की स्वायत्तता देश की विधानसभाओं को नष्ट कर देगी। यह बिल असंवैधानिक है। यह सब एक सत्ताधारी पार्टी द्वारा किया गया है। यह चुनाव सुधार नहीं, बल्कि अपनी भूख मिटाने का प्रयास है।
एक देश, एक चुनाव विधेयक क्या है?
एक देश-एक चुनाव का अर्थ है पूरे देश में एक ही दिन (या उससे कम अवधि में) सभी प्रकार के चुनाव एक साथ कराना। भारत के संदर्भ में लोकसभा चुनाव के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इसके साथ ही स्थानीय निकाय यानी नगर निगम (नगर निगम), नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायत के चुनाव भी होने चाहिए। ऐसी व्यवस्था जहां सभी चुनाव एक ही दिन या कुछ दिनों की निश्चित समय सीमा के भीतर होते हैं, उसे एक देश-एक चुनाव कहा जाता है।
एक देश-एक चुनाव’ से लाभ
- लागत में कमी: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे चुनाव की लागत कम हो जाएगी। हर बार अलग-अलग चुनाव कराने में भारी रकम खर्च होती है। अगर पूरे देश में एक ही समय पर चुनाव होंगे तो खर्च भी एक ही समय पर करना होगा।
- सिस्टम पर बोझ होगा कम : बार-बार चुनाव होने से प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बोझ पड़ता है, क्योंकि उन्हें हर बार चुनाव ड्यूटी करनी पड़ती है। चुनाव कर्मियों के रहने-खाने और परिवहन की परेशानी भी तुरंत दूर हो जायेगी।
- विकास कार्यों पर ध्यान: अगर चुनाव एक साथ खत्म हो जाएंगे तो केंद्र सरकार और राज्य सरकारें काम पर फोकस कर पाएंगी। पार्टियां बार-बार चुनावी मोड में नहीं आएंगी और विकास कार्यों पर फोकस कर पाएंगी।
- मतदाताओं की संख्या में वृद्धि: एक ही दिन चुनाव कराने से मतदाताओं की संख्या में भी वृद्धि होगी, क्योंकि उन्हें यह महसूस नहीं होगा कि चुनाव बार-बार आ रहा है, अन्यथा वे अगले चुनाव में मतदान करेंगे। पांच साल में एक बार मतदान करने का मौका मिलने पर मतदाता इसे हाथ से नहीं जाने देंगे और अपने प्रतिनिधियों को चुनने में रुचि दिखाएंगे।
एक देश-एक चुनाव की चुनौतियाँ
- संवैधानिक बदलाव जरूरी: एक राष्ट्र-एक चुनाव प्रणाली को लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती संविधान और कानूनों में बदलाव है। संविधान में संशोधन के बाद इसे राज्य विधानसभाओं में पारित कराना होता है।
- यदि सरकार भंग हो जाए तो क्या होगा?: यदि किसी कारण से लोकसभा या राज्य विधानसभा भंग हो जाती है, तो एक राष्ट्र-एक चुनाव प्रणाली को कैसे बनाए रखा जाए? यदि एक राज्य की सरकार बर्खास्त हो जाती है तो क्या सभी राज्यों की सरकारें रद्द करके पूरे देश में चुनाव नहीं कराये जा सकते?
- संसाधनों की कमी: हमारे देश में ईवीएम और वीवीपैट के माध्यम से चुनाव कराए जाते हैं, जिनकी संख्या सीमित है। फिलहाल चूंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं, इसलिए जो भी संसाधन उपलब्ध हैं, उन्हें पूरा किया जा सकता है, लेकिन अगर देश भर में सभी तरह के चुनाव एक साथ होंगे, तो चुनाव के लिए जरूरी संसाधन कहां से आएंगे? अगर प्रशासनिक अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों की कमी है तो क्या किया जाना चाहिए?