पाटण। पाटन में रानी की वाव गुजरात के स्मारकों और कला की एक उत्कृष्ट विरासत है। 2014 में रानी वाव को उसके जल प्रबंधन और उत्कृष्ट कलात्मक विरासत के लिए यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल नामित किया गया था। रानी की वाव की कलाकृतियों को देखने के लिए राज्य, देश और दुनियाभर से पर्यटक आते हैं। विश्व धरोहर स्थल रानी की वाव में पिछले दो वर्षों में देश-विदेश से पांच लाख से अधिक पर्यटक आए, जिनमें चार हजार से अधिक विदेशी पर्यटक भी शामिल हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 19 नवंबर से 25 नवंबर 2024 तक पूरे भारत में विश्व विरासत सप्ताह मनाया जा रहा है, ऐसे में गुजरात के पाटण में विश्व धरोहर स्थल रानी की वाव दुनियाभर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है। भारतीय मुद्रा के 100 रुपये के नोट पर भी रानी की वाव की छवि अंकित है।
ये है इसका इतिहास
पाटण शहर से लगभग दो किमी दूर सरस्वती नदी के तट पर रानी की वाव है। ईसवी संवत 1022 से 1063 तक ‘स्वर्ण युग’ के नाम से जाने जाने वाले सोलंकी राजवंश के गौरवशाली शासक भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयमती ने अपने पति की याद में इस वाव का निर्माण कराया था। इस वाव का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में है। वाव की लंबाई 63 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर और गहराई 27 मीटर है। वेव का निर्माण मुख्यतः ईंटों से किया गया है, लेकिन इसका ऊपरी भाग पत्थरों से तराशा गया है। वाव के दो मुख्य भाग हैं, पूर्वी भाग 7 मंजिला सीढ़ीदार गलियारे वाला और पश्चिमी भाग गलियारे से जुड़ा हुआ एक कुआं है।
जानकारी के अनुसार आजादी से पहले यानी… 1936 में रानी की वाव को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया था। ईसवी संवत 1962-63 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस स्थल पर उत्खनन कार्य शुरू किया। इसके रानी के वाव का जीर्णोद्धार किया गया। पुराने शिलालेखों के आधार पर यह वाव लगभग 13वीं शताब्दी का माना जाता है। रानी की वाव को 2014 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया था।