नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के मुद्दे पर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि एससी और एसटी में उप श्रेणियां बनाई जा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी, एसटी में सब कैटेगरी नहीं बनाई जा सकती हैं। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 6/1 के मत से सुनाया है। यह सुनवाई सीजेआई चंद्रचूड कर रहे थे, उसके साथ 6 जजों से सहमति जताई, जबकि जस्टिस बेला त्रिवेदी इससे सहमत नहीं थी।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीष चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मामले पर तीन दिनों तक सुनवाई करने के बाद 8 फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।
2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने पाया कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के फैसले पर बड़ी बेंच द्वारा फिर से विचार किया जाना चाहिए, जिसमें कहा गया कि एससी श्रेणी के भीतर सब कैटेगरी की अनुमति नहीं है। इसके बाद सीजेआई के नेतृत्व में सात जजों की बेंच का गठन किया गया।
ये है पूरा मामला
1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो श्रेणियाें में विभाजित करके अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण नीति पेश की थी। एक बाल्मीकि और मजहबी सिखाें के लिए और दूसरी बाकी अनुसूचित जातियों के लिए। ये नियम 30 साल तक लागू रहा। इसके बाद 2006 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंुच गया। इस दौरान ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले का हवाला दिया गया। इससे पंजाब सरकार को झटका लगा और आरक्षण नीति रद्द कर दी गई। चिन्नैया फैसले में कहा गया था कि एससी श्रेणी के अंदर सब कैटेगरी की अनुमति नहीं है। यह समाज के अधिकार का उल्लंघन है।