नई दिल्ली। नए वक्फ अधिनियम के खिलाफ दायर याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। न्यायालय में 73 याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें से दस याचिकाओं पर आज सुनवाई होने की बात कही गई। वक्फ संशोधन अधिनियम की वैधता को अदालत में चुनौती दी गई है। याचिकाओं में दावा किया गया कि संशोधित कानून के तहत वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन असामान्य तरीके से किया जाएगा और यह कानून मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी. न्यायमूर्ति विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। हाल ही में केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम में संशोधन किया है, जिसे लागू कर दिया गया है। इसको लेकर कुछ जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं और कई जगहों पर हिंसक घटनाएं भी सामने आई हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद 5 अप्रैल को संसद में बहस के दौरान यह कानून पारित किया गया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले पर संज्ञान लिया है और कहा है कि इस मुद्दे पर जो हिंसा भड़की है वह बहुत परेशान करने वाली बात है। अदालत इस मामले में कोई अंतिम निर्णय नहीं दे सकती। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे की सुनवाई कल यानी गुरुवार दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि आमतौर पर जब कोई कानून पारित होता है तो हम हस्तक्षेप नहीं करते हैं, लेकिन इस कानून में कई अपवाद हैं।
इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का पक्ष लिया। वक्फ-दर-उपयोगकर्ता संपत्तियों को रद्द करने के केंद्र सरकार के कदम पर कड़े सवाल उठाए गए। मुख्य न्यायाधीश ने साफ कहा कि अगर इन संपत्तियों को डीनोटिफाई (रद्द) किया गया तो यह बड़ा मुद्दा बन सकता है। सीजेआई ने सरकार की ओर से दलील दे रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि आप अभी भी मेरे सवाल का जवाब नहीं दे रहे हैं। क्या उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ की मान्यता रद्द की जाएगी या नहीं? जिसके जवाब में एसजी मेहता ने कहा कि अगर संपत्ति पंजीकृत है, तो उसे वक्फ माना जाएगा। जिस पर सीजेआई ने कहा कि अगर वक्फ द्वारा यूजर संपत्तियों को रद्द कर दिया जाता है तो यह एक गंभीर मुद्दा बन जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार-विमर्श के लिए जेपीसी का गठन किया गया था। इसमें 38 बैठकें हुईं, जिनमें 92 लाख मामलों की जांच की गई। लोकसभा और राज्यसभा द्वारा अनुमोदित होने के बाद राष्ट्रपति ने वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी दी। नये वक्फ कानून में अब शियाओं को भी जगह मिलेगी। इससे पहले केवल सुन्नियों को ही जगह दी गई थी।
कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि कानून ने कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार दिया है कि कौन सी जमीन वक्फ है और कौन सी नहीं। अगर कोई विवाद होगा तो सरकार का यह आदमी फैसला करेगा, यानी अपने मामले में वह खुद ही जज की भूमिका निभाएगा। यह पूर्णतः असंवैधानिक है।
कपिल सिब्बल ने वक्फ अधिनियम का विरोध करते हुए कहा कि पहले केवल मुसलमान ही बोर्ड का हिस्सा हो सकते थे, लेकिन अब हिंदू भी इसका हिस्सा होंगे। अनुच्छेद 26 कहता है कि सभी सदस्य मुसलमान होंगे। कानून के लागू होने के बाद बिना वक्फ डीड के कोई वक्फ नहीं बनाया जा सकेगा। सरकार का कहना है कि विवाद की स्थिति में सरकारी अधिकारी जांच करेंगे। यह असंवैधानिक है। वक्फ अधिनियम के खिलाफ तर्क देते हुए सिब्बल ने कहा कि यह पूरी तरह से सरकारी अधिग्रहण है। आप कौन होते हैं ये कहने वाले कि मैं वक्फ खरीदार नहीं बन सकता? मुसलमानों को अब वक्फ बनाने के लिए दस्तावेज जमा करने होंगे। अधिकांश वक्फ संपत्तियां और जमीनें 100 साल पहले दान की गई थीं। तो फिर हमें इसका सबूत कहां से मिलेगा? ऐसे मुद्दे कई राज्यों में सामने आएंगे। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले पर ध्यान देकर निर्णय लेना चाहिए।
सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि सरकार ने हिंदुओं के मामले में भी कानून बनाया है। संसद ने मुसलमानों के लिए भी कानून बनाए हैं। अनुच्छेद 26 धर्मनिरपेक्ष है। यह सभी समुदायों पर लागू होता है।