नई दिल्ली। होली के दिन दिल्ली के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वर्मा के घर में लगी आग ने उनके घर से करोड़ों रुपये की नकदी की कथित बरामदगी से जुड़े विवाद को और जटिल बना दिया है। न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में कथित तौर पर करोड़ों रुपये की नकदी मिलने की घटना की जांच कर रहे दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने शनिवार को अपनी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को सौंप दी। इसके साथ ही सीजेआई ने दिल्ली हाईकोर्ट को आदेश दिया है कि वह जज वर्मा को फिलहाल कोई न्यायिक कार्य न सौंपे और घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के घर से कथित तौर पर 25 करोड़ रुपए से अधिक की नकदी मिलने का विवाद गरमा गया है। शुक्रवार को देशभर में इस बात को लेकर काफी हंगामा हुआ कि इस घटना में करोड़ों रुपए नकद मिलने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम केवल न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने से संतुष्ट है।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच शनिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इस रिपोर्ट के आधार पर अब वे आगे की कार्रवाई करेंगे। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने शनिवार को यह रिपोर्ट मिलने के बाद न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच के आदेश दिए हैं। इसके अतिरिक्त, इस पूरे विवाद में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की गई है। इसके अतिरिक्त, मुख्य न्यायाधीश ने दिल्ली उच्च न्यायालय को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपने का भी आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ गठित समिति में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस संधावलिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का जवाब और अन्य दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए जाएंगे।
इस बीच, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। शनिवार को जस्टिस वर्मा से जुड़ा एक नया मामला सामने आया है। इस मामले में उनका नाम सीबीआई की एफआईआर में भी दर्ज किया गया था। यह मामला उत्तर प्रदेश के सिंभावली शुगर मिल का है। आरोप है कि इस मिल ने बैंकों से धोखाधड़ी की है। इस मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने से पहले सिंभावली शुगर्स में गैर-कार्यकारी निदेशक थे। सिंभावली शुगर्स का खाता वर्ष 2012 में एनपीए घोषित कर दिया गया था।
सीबीआई ने 22 फरवरी, 2018 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत चीनी मिल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। पांच दिन बाद ईडी ने 27 फरवरी 2018 को मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत ईसीआईआर दर्ज की थी। ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओबीसी) की शिकायत पर सिंभावली शुगर मिल के निदेशकों सहित कुल 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, जिनमें से 10वें निदेशक न्यायमूर्ति वर्मा थे। उनका नाम कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक के रूप में एफआईआर में दर्ज था। ओबीसी ने सिंभावली शुगर्स को रु. 150 करोड़ रुपए का ऋण दिया था। कंपनी ने किसानों की मदद के नाम पर ऋण लिया, लेकिन उसका इस्तेमाल अपने लिए किया। बाद में ओबीसी का पंजाब नेशनल बैंक में विलय कर दिया गया।
अब यह बात सामने आई है कि उनके घर से कथित तौर पर करोड़ों रुपए नकद मिले हैं। सीबीआई की एफआईआर में जज का नाम आना भी गंभीर मामला माना जा रहा है।