मैनपुरी। उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित दिहुली नरसंहार मामले में अदालत ने आखिरकार 44 साल बाद अपना फैसला सुना दिया है। इस हत्याकांड में अदालत ने कुल 17 अपराधियों में से तीन को मौत की सजा सुनाई है। दोषी ठहराए गए अपराधियों की उम्र वर्तमान में लगभग 70 वर्ष है। जबकि 13 अन्य लोगों की पहले ही मृत्यु हो चुकी है।
मैनपुरी के दिहुली में दलित समुदाय को निशाना बनाने वाले इन 17 डकैतों को अदालत ने दोषी ठहराया है। जिसमें कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई है। इन सभी पर 50,000-50,000 तक का जुर्माना भी लगाया गया है। इस हत्याकांड के 17 आरोपियों में से 13 की मौत हो चुकी है।
1981 में मैनपुरी के दिहुली गांव में जातिगत हिंसा में 24 दलित मारे गये थे। इस मामले में तीन आरोपियों को दोषी ठहराया गया है। सजा सुनाने की तारीख 18 मार्च 2025 तय की गई थी, जिसके बाद आज सजा का ऐलान किया गया। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने घटनास्थल का दौरा किया था।
18 नवंबर 1981 को उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के जसराना स्थित दिहुली गांव में जाति आधारित हमले में दलित समुदाय के 24 लोग मारे गए थे। 17 डाकू पुलिस के वेश में गांव में घुसे थे और 24 दलितों की निर्मम हत्या कर दी थी। मृतकों में छह माह और दो वर्ष का बच्चा तथा महिलाएं शामिल हैं।
इस मामले में जसरा थाने में राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष चौहान उर्फ संतोषा, राम सेवक, रविन्द्र सिंह, रामपाल सिंह, वेदराम, मिट्ठू, भूपराम, मानिक चन्द्र, लटूरी, राम सिंह, चुन्नीलाल, होरी लाल, सोनपाल, लाख सिंह, बनवारी, जगदीश, रेवती देवी, फूल देवी, कप्तान सिंह, कमरुद्दीन, श्यामवीर, कुंवर पाल, लक्ष्मी के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया था। इस मामले का फैसला आने में 44 साल लग गए। जिसके कारण अधिकांश आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है। इस मामले में एक अन्य आरोपी ज्ञानचंद उर्फ गिन्ना अभी फरार है, उसके लिए अलग से कानूनी कार्यवाही चल रही है।