अहमदाबाद। गुजरात हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए बेट द्वारका में सरकारी चारागाह भूमि पर अवैध रूप से निर्मित धार्मिक स्थलों को हटाने की अनुमति दे दी है। न्यायमूर्ति मोना एम. ने मंगलवार, 4 फरवरी को हाईकोर्ट में दायर विभिन्न रिट याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिका में बेट द्वारका में स्थित मदरसों, दरगाहों और मस्जिदों को गिराए जाने के खिलाफ सुरक्षा की मांग की गई थी। भट्ट ने इसे कड़े शब्दों में टिप्पणी करके हुए सभी याचिकाएं खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस मामले में सभी रिट याचिकाएं अयोग्य होने के कारण खारिज की जाती हैं।
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के बाद बेट द्वारका में अवैध और अनाधिकृत निर्माण, अतिक्रमण को हटाने का रास्ता साफ हो गया है। याचिकाकर्ता बेट भाडेल मुस्लिम जमात और अन्य द्वारा दायर विभिन्न रिट याचिकाओं में दावा किया गया था कि विवादित ढांचे और स्थान धार्मिक हैं और उनसे समुदाय की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। इसमें कुछ दरगाहें और मदरसे भी शामिल हैं। इस भूमि का उपयोग कब्रिस्तान के रूप में भी किया जाता है। यह विवादित संपत्ति वक्फ अधिनियम के अंतर्गत आती है, इसलिए अधिकारी वक्फ संपत्ति को ध्वस्त नहीं कर सकते।
राज्य सरकार की ओर से मुख्य लोक अभियोजक गुरशरण सिंह विर्क और सहायक लोक अभियोजक धारीत्री पंचोली ने अदालत का ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया कि विवादित धार्मिक स्थल (मदरसा, दरगाह या मस्जिद) वक्फ संपत्ति नहीं हैं, बल्कि वास्तव में सरकारी और चारागाह भूमि पर निर्मित अवैध और अनधिकृत हैं। इसके अलावा सरकारी रिकॉर्ड या दस्तावेजों में संपत्ति के वक्फ होने का कोई सबूत नहीं मिला है, न ही आवेदक इसे प्रस्तुत कर पाया है। पीटीआर (पब्लिक ट्रस्ट रजिस्टर) रिकॉर्ड में भी विवादित संपत्तियों वाली सर्वे संख्या वाली जमीन शामिल नहीं है। यह जमीन सरकारी है और अगर उस समय इसे कब्रिस्तान के लिए दे दिया गया था तो भी यह वक्फ संपत्ति नहीं बन जाती।
सरकार के दिनांक 17-8-1984 और 12-9-1989 के प्रस्ताव के अनुसार, यदि भूमि किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए आवंटित की गई है, तो भी उसका स्वामित्व राज्य सरकार के पास ही रहेगा। इसलिए कोई भी समिति, ट्रस्ट या वक्फ इस जमीन को अपने नाम पर हस्तांतरित नहीं कर सकता। चौंकाने वाली बात यह है कि चैरिटी कमिश्नर या स्थानीय अधिकारियों की अनुमति के बिना ही इन जमीनों पर बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण किया गया है। जिसे कानून की नजर में किसी भी हालत में बरकरार नहीं रखा जा सकता। सरकारी चरागाह की जमीनों पर बड़ी मस्जिदों और मदरसों समेत अवैध निर्माण किए गए हैं और इन्हें गिराना जरूरी है, क्योंकि यह पूरे द्वारका में ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया का क्रमबद्ध हिस्सा है। यह किसी के साथ अन्याय की बात नहीं है, बल्कि कानून का पालन करने और सरकारी-चरागाह की जमीन पर कब्जा करने का मामला है।
न्यायमूर्ति मोना एम. भट्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दावा किए गए सर्वे नंबर वाली जमीनें पब्लिक ट्रस्ट रजिस्टर में भी दर्ज नहीं हैं। विचाराधीन भूमि चारागाह या राज्य सरकार के स्वामित्व में प्रतीत होती हैं। यहां तक कि ग्राम पंचायत की प्रविष्टियों को देखने से भी पता चलता है कि ये जमीनें कब्रिस्तान के उपयोग के लिए आवंटित की गई थीं और इसलिए, कहीं भी ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि वर्तमान में विवादित संपत्तियां वक्फ संपत्तियां हैं। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, केवल वक्फ के उपयोग या उसके पंजीकरण का दावा करने से ये संपत्तियां वक्फ संपत्ति नहीं बन जातीं।