अहमदाबाद। अहमदाबाद की कढ़ाई कला(खाटला वर्क) की मांग दुनियाभर में बढ़ गई है। फ्रांस और इटली में अहमदाबाद के विशेष कढ़ाई वाले कपड़े की ज्यादा मांग है। इस कला से जुड़े 40 हजार से अधिक कारीगर अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं। अहमदाबाद के खानपुर, कालूपुर, नारोल और वटवा के अलावा धोलका और उसके आसपास के इलाकों में 40 हजार से ज्यादा कढ़ाई करने वाले कारीगर तांबे के तार, डोरी और मोतियों की मदद से जरदोशी, मरोड़ी के नाम से मशहूर कढ़ाई का काम कर रहे हैं। टेक्नोलॉजी के युग में भी इसकी मांग दुनिया के अन्य देशों तक फैल रही है।
अहमदाबाद के कपड़ा व्यापारी विजयभाई ने बताया कि कढ़ाई कला की मांग यूरोपीय देशों में सबसे ज्यादा है। अहमदाबाद में मजदूरी सस्ती है, इसलिए बड़ी यूरोपीय कंपनियां लेबर खर्च को बचाने के लिए बड़े ऑर्डर देती हैं। यहां से कढ़ाई वाले कपड़े निर्यात किये जाते हैं। बाद में इसकी सिलाई का काम यूरोपीय देशों में किया जाता है और इसे मेड इन फ्रांस और मेड इन यूरोप के नाम से बाजार में बेचा जाता है।
ढोलका के पाखाली चौक में पिछले 50 वर्षों से जरदोशी और मरोड़ी का काम कर रहे 65 वर्षीय जावेद खान कहते हैं कि बच्चे इस काम को देखते-देखते सीख जाते हैं। अहमदाबाद, सूरत और मुंबई से भी काम मिलता है। एक कारीगर प्रतिदिन औसतन 1000 रुपये कमाता है। अहमदाबाद पूरा परिवार घर की महिलाओं के साथ यह काम करता है, इसलिए कढ़ाई से अच्छी आमदनी होती है।
कढ़ाई कला मूलतः उत्तर प्रदेश के राजघराने की कला थी। जो धीरे-धीरे गुजरात तक आ गई। शादी के सीजन में अहमदाबाद, सूरत, मुंबई और राजकोट जैसे शहरों में इसकी मांग अधिक है। कारीगरों के साथ-साथ व्यापारियों को भी कढ़ाई से अच्छा मुनाफा हो रहा है।