अहमदाबाद। आज 1 नवंबर, शुक्रवार को कार्तिक माह की अमावस्या है। इस साल अमावस्या दो दिन है। अमावस्या की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। देश के अधिकांश हिस्सों में 31 अक्टूबर को दिवाली मनाई गई, जबकि कुछ लोग आज दिवाली मनाएंगे। कार्तिक अमावस्या पर लक्ष्मीजी की पूजा होती है और दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। दिवाली के एक दिन बाद ही गुजराती का नया साल शुरू हो जाता है, जबकि इस बार एक दिन का गैप है। गुजरात में 31 अक्टूबर को दिवाली मनाई गई, 1 नवंबर को गैप रहेगा और 2 नवंबर को बेसता वर्ष यानी नववर्ष मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार अगले साल यानी विक्रम संवत् 2081, इसवी सन 2025 में शनिवार, 18 अक्टूबर को धनतेरस, 20 अक्टूबर, सोमवार को दिवाली, 21 अक्टूबर, मंगलवार को गैप और 22 अक्टूबर, बुधवार को बेसता वर्ष यानी गुजराती नववर्ष मनाया जाएगा। साल 2023 में भी दिवाली के बाद एक दिन का गैप था।
साल 2025 में भी दिवाली को लेकर भ्रम की स्थिित बनी हुई है। पंचांग के अनुसार 20 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 45 मिनट से अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी और 21 अक्टूबर को शाम 5बजकर 54 मिनट पर समापन होगा। चंूकि दिवाली पर लक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल में होती है, 21 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो रही है, इसलिए 20 अक्टूबर को ही दिवाली मनाई जाएगी।
इस बारे में ज्योतिषियों का कहना है कि चंद्रमा की कलाओं को 16 भागों में बांटा गया है। चंद्रमा के आकार और स्थिति में होने वाले परिवर्तन को ही कला कहा जाता है। यह परिवर्तन पूर्णिमा से अमावस्या और अमावस्या से पूर्णिमा तक के क्रम में होता है। इन कलाओं का मानव जीवन पर असर पड़ता है। इसी के आधार पर हमारे पंचांग और चंद्रमास की तिथियां तय होती हैं।
चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है जबकि पृथ्वी सूर्य की। इसी क्रम में सूर्य का कुछ प्रकाश पृथ्वी द्वारा अवरूद्ध होने के कारण चंद्रमा पर छाया बनता है जो रोज क्रम से घटता और बढ़ता रहता है। सूरज का जो प्रकाश अवरूद्ध नहीं होता वह चंद्रमा से परावर्तित होकर चमकदार दिखता है। इसी छाया और उजले भाग को चंद्रमा की कला कहते हैं। यह सूरज, पृथ्वी और चंद्रमा की परिक्रमण गति के कारण से होता है।
ज्योतिषियों का कहना है कि चंद्रमा कभी-कभी 16 कलाओं को समय से पहले ही पूरा कर लेते हैं, इससे तिथियों में घट-बढ़ होती है। पंचांग में तिथियों के क्षय और वृद्धि का यही कारण है। कभी-कभी दिन में ही तिथि बदल जाती है। इससे त्योहारों पर भी असर पड़ता है।
ये हैं चंद्रमा की 16 कलाएं-
अमृत, मनदा (विचार), पुष्प (सौंदर्य), पुष्टि (स्वस्थता), तुष्टि( इच्छापूर्ति), ध्रुति (विद्या), शाशनी (तेज), चंद्रिका (शांति), कांति (कीर्ति), ज्योत्सना (प्रकाश), श्री (धन), प्रीति (प्रेम), अंगदा (स्थायित्व), पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख)।
भगवान श्रीराम 12 कलाओं और भगवान श्रीकृष्ण सभी 16 कलाओं के ज्ञाता थे। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत वर्षा करता है।
नोट: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष गणना के आधार पर है और सामान्य सूचना के लिए है। DHN इसका समर्थन नहीं करता है।