पं. अविनाश चंद्र तिवारी “दीपक’
उपाध्यायपुर(पट्टी, प्रतापगढ़)। “कृष्ण जन्माष्टमी” और “जयन्ती” ये दोनों भिन्न- भिन्न व्रत हैं और इन दोनों को करने का विधान अलग है। इस वर्ष जयन्ती और जन्माष्टमी एक ही दिन पड़ रही है। अतः “जयन्ती” कर लेने से दोनों की सम्पन्नता हो जाएगी। इस वर्ष श्रद्धालु 26 अगस्त 2024 को ही जयन्ती और जन्माष्टमी व्रत करें।
यस्मिन् वर्षे जयन्त्याख्यो योगो जन्माष्टमी तदा।
अन्तर्भूता जयन्त्यां स्याद् ऋक्षयोगप्रशस्तितः॥ निर्णयसिन्धु
इस साल सोने पर सुहागा है। यह जन्माष्टमी सोमवार युक्त है जिसका फल और भी विशेष है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और जयन्ती
कृष्ण जन्माष्टमी
26 अगस्त 2024, सोमवार
जयंती
इस वर्ष भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, सोमवार, रोहिणी का योग है, जिसका फल करोड़ कुल की मुक्ति है।
अष्टमी बुधवारे च सोमे चैव द्विजोत्तम।
रोहिणीऋक्षसंयुक्ता कुलकोटिविमुक्तिदा।। पद्मपुराण॥
श्री कृष्ण के जन्म का समय
विष्णुपुराण और ब्रह्मपुराण के अनुसार-
प्रावृट्काले च नभसि कृष्णाष्टम्यामहं निशि।
उत्पत्स्यामि नवम्याञ्च प्रसूतिं त्वमवाप्स्यसि॥
श्रीकृष्ण योगनिद्रा से कहते हैं कि वर्षाऋतु में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रात्रि के समय मैं जन्म लूंगा और तुम नवमी को उत्पन्न होगी।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार-
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि जब रात्रि के सात मुहूर्त निकल गए और आठवां आया तब आधी रात के समय सर्वोत्कृष्ट शुभ लग्न आया। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। अष्टमी तिथि तथा रोहिणी नक्षत्र के संयोग से जयंती नामक योग बन रहा था। आकाश में उपस्थित सूर्य आदि सब ग्रह अपनी गति के क्रम को लांघकर मीन लग्न में जा पहुंचे। विधाता की आज्ञा से एक मुहूर्त के लिए प्रसन्नतापूर्वक वे सभी ग्रह ग्यारहवें स्थान में जाकर सानंद स्थित हो गए। (अर्थात- श्रीकृष्ण का जन्म वृषभ लग्न में हुआ)
भविष्यपुराण के अनुसार-
सिंहराशिगते सूर्ये गगने जलदाकुले।
मासि भाद्रपदेऽष्टम्यां कृष्णपक्षेऽर्धरात्रके।
वृषराशिस्थिते चन्द्रे नक्षत्रे रोहिणीयुते॥
जिस समय सिंह राशि में सूर्य और वृष राशि में चन्द्रमा था, उस भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में मेरा जन्म हुआ।
अग्निपुराण के अनुसार-
भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की रोहिणी नक्षत्र से युक्त अष्टमी तिथि को ही अर्धरात्रि के समय भगवान् श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ था, इसलिए इसी अष्टमी को उनकी जयंती मनाई जाती है।
देवीभागवतपुराण के अनुसार-
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्मी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष लग्न में अर्द्धरात्रि की वेला में भगवान ने देवकी के गर्भ से परम पुरुष के रूप में जन्म लिया।
ततः समभवद्देवी देवक्याः परमः पुमान्।
अष्म्यामधर्द्धरात्रे तु रोहिण्यामसिते वृषे॥
हरिवंशपुराण के अनुसार-
भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म के समय अभिजित नक्षत्र, जयन्ती नामक रात्रि और विजय नामक मुहूर्त था।
अभिजिन्नाम नक्षत्रं जायन्तीनाम शर्बरी।
मुहूर्तो विजयो नाम यत्र जातो जनार्दनः॥
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के विशेष नियम
व्रते नियमविशेषोरूपम् नियमश्चात्रोपवासो जागरणं।
कृष्णपूजाचन्द्रार्घदानमित्यादिलक्षणः॥
- उपवास
- जागरण
- कृष्णपूजा
- अर्घ्य
- दान
इस दिन क्या करें
सुबह स्नान आदि से निवृत होकर “ॐ क्लीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा॥
- इस मंत्र का १०८ बार जप करें। याद रहे पूरे दिन रात कुछ नहीं खाना है। पारण तिथि और नक्षत्र के अंत में होगा। यदि रोगादि से ग्रस्त हों तो फल ले लें।
- रात्रि के बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतिस्वरूप खीरा काटकर भगवान का जन्म कराएं।
- बाल गोपाल कृष्ण को पंचामृत से स्नान कराकर, केसर मिश्रित कच्चा दूध, गंगाजल, गुलाब जल को अलग-अलग दक्षिणावर्ती शंख में भरकर स्नान कराएं। स्नान कराते समय योगेश्वराय योगसम्भवाय योगपतये गोविन्दाय नमो नम: का जप करें।
- यज्ञेश्वराय यज्ञसम्भवाय यज्ञपतये गोविन्दाय नमो नम: इस मंत्र से अर्घ्य, धूप, दीप आदि अर्पण करे। शृंगार करते समय नवीन वस्त्र पहनाएं। पुष्प माला अर्पित करें। मोरपंख मस्तक पर लगाएं। चन्दन लगाएं। चन्द्रमा को भी अर्घ्य दें।
- गोपाल जी का तुलसी से सहस्त्रार्चन करें।
- मखाने की खीर का भोग लगाएं। खीर में तुलसी दल आवश्यक रूप से होनी चाहिए।
- माखन मिश्री का भोग लगाएं। धनिए की पंजरी का भोग लगाएं।
इस मंत्र से भगवान का ध्यान करें
अनघं वामनं शौरि वैकुण्ठ पुरुषोत्तमम।
वासुदेवं हृषीकेशं माधवं मधुसूदनम॥
वाराहं पुण्डरीकाक्षं नृसिंहं ब्राह्मणप्रियम।
दामोदरं पद्यनाभं केशवं गरुड़ध्वजम॥
गोविन्दमच्युतं कृष्णमनन्तमपराजितम।
अघोक्षजं जगद्विजं सर्गस्थित्यन्तकारणम॥
अनादिनिधनं विष्णुं त्रैलोक्येश त्रिविक्रमम।
नारायण चतुर्बाहुं शंखचक्रगदाधरम॥
पीताम्बरधरं नित्यं वनमालाविभूषितम।
श्रीवत्सांग जगत्सेतुं श्रीधरं श्रीपति हरिम्॥
- विभिन्न कृष्ण स्तोत्रों, मन्त्रों का पाठ करें।
- भजन-कीर्तन गाएं और श्रीकृष्ण की आरती करें। घी के अनेक दीपक जलाएं। श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जागरण करना चाहिए।
जागरण करना जयन्ती व्रत और जमाष्टमी व्रत का एक अभिन्न अंग है। इस दिन जागरण अवश्य करना चाहिये। जागरण करते हुए पुराण का पाठ करना चाहिए। भगवान के जागरण में जो पुराण को पढ़ता है उसके जन्म-जन्मांतर के पाप इस प्रकार जल जाते हैं जैसे रूई का समूह जल जाता है। जो मनुष्य भगवान् के व्रत के दिन भक्ति से पुराण सुनता है उसके करोड़ों जन्म के पाप उसी क्षण नाश हो जाते हैं। किसी भी पुराण का पाठ कर सकते हैं। श्रीमद्भागवत पुराण तो विशेष है ही।
अर्घ्य प्रदान करें
श्रीकृष्णजन्माष्टमीरात्रौ श्रीकृष्णाय अर्घ्यप्रदानं महाफलप्रदम्॥
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को श्रीकृष्ण और चन्द्र को अर्घ्य देने का महाफल मिलता है।
चंद्रमा को अर्घ्य देने का मंत्र
क्षीरोदार्णवसंभूत अत्रिगोत्रसमुद्भव।
गृहाणार्घ्यं शशाङ्केश रोहिणीसहितो मम॥
रोहिणीसहितचन्द्रमसे इदमर्घ्यं समर्पयामि।
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं ज्योतिषां पतये नमः।
नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं नः प्रतिगृह्यताम्॥
रोहिणीसहितचन्द्रमसे इदमर्घ्यं समर्पयामि।
श्रीकृष्ण को अर्घ्य देने का मंत्र
जातः कंसवधार्थाय भूभारोत्तारणाय च।
कौरवाणां विनाशाय दैत्यानां निधनाय च॥
पाण्डवानां हितार्थाय धर्मसंस्थापनाय च।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं देवक्या सहितो हरे॥
देवकीसहितश्रीकृष्णाय इदमर्घ्यं समर्पयामि।
ब्रह्मवैवर्त पुराण, कालनिर्णय में उल्लेख है कि जब तक अष्टमी चलती रहे या उस पर रोहिणी नक्षत्र रहे तब तक पारण नहीं करना चाहिए। जो ऐसी स्थिति में पारण कर लेता है वह अपने किए कराए पर ही पानी फेर लेता है और उपवास से प्राप्त फल को नष्ट कर लेता है। अत: तिथि तथा नक्षत्र के अन्त में ही पारण करना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य को कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत/उपवास अवश्य रहना चाहिए। ऐसा न करने पर अत्यधिक दोष लगता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भारतवर्ष में रहने वाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। इसमें संशय नहीं है। वह दीर्घकाल तक वैकुण्ठलोक में आनन्द भोगता है, फिर उत्तम योनि में जन्म लेने पर उसे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति उत्पन्न हो जाती है-यह निश्चित है।
अग्निपुराण के अनुसार इस तिथि को उपवास करने से मनुष्य सात जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की रोहिणी नक्षत्रयुक्त अष्टमी को उपवास रखकर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करना चाहिए। यह मोक्ष प्रदान करने वाला है।
भविष्यपुराण के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है।
स्कन्दपुराण के अनुसार जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी व्रत नहीं करता वह जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है।
किसी विशेष कारणवश यदि कोई जन्माष्टमी व्रत रखने में समर्थ नहीं है तो किसी एक ब्राह्मण को भरपेट भोजन खिलाए। यदि वह भी संभव नहीं तो ब्राह्मण को इतनी दक्षिणा दें की वो 2 समय भरपेट भोजन कर सके। यदि वह भी संभव नहीं तो गायत्री मंत्र का 1000 बार जप करें।
अग्निपुराण के अनुसार पूजन की विधि इस प्रकार है
आवाहन और नमस्कार
आवाहयाम्यहं कृष्णं बलभद्रं च देवकीम।
वसुदेवं यशोदां गा: पूजयामि नमोऽस्तु ते॥
योगाय योगपतये योगेसहाय नमो नम:।
योगादिसम्भवायैव गोविन्दाय नमो नम:॥
मैं श्रीकृष्ण, बलभद्र, देवकी, वासुदेव, यशोदा और गौओं का आवाहन एवं पूजन करता हूं। आप सबको नमस्कार है। योग के आदि कारण, उत्पत्ति स्थान श्री गोविंद के लिए बारंबार नमस्कार है।
तदनंतर भगवान् श्रीकृष्ण को स्नान कराएं और इस मंत्र से उन्हें अर्घ्यदान करंे।
यज्ञेश्वराय यज्ञाय यज्ञानां पतये नम:। यज्ञादिसम्भवायैव गोविन्दाय नमो नम:॥
‘यज्ञेश्वर, यज्ञस्वरूप, यज्ञों के अधिपति एवं यज्ञ के आदि कारण श्रीगोविंद को बारंबार नमस्कार है।
पुष्प, धूप
गृहाण देव पुष्पाणि सुगन्धिनि प्रियाणि ते।
सर्वकामप्रदो देव भव में देववंदित॥
धूपधूपित धूपं त्वं धुपितैस्त्वं गृहाण में।
सुगन्धिधुपगन्धाढयं कुरु मां सर्वदा हरे॥
‘हे देव! आपके प्रिय ये सुगन्धयुक्त पुष्प ग्रहण कीजिए। देवताओं द्वारा पूजित भगवन! मेरी सारी मनोकामनाएं सिद्ध कीजिए। आप धूप से सदा धूपित हैं, मेरे द्वारा अर्पित धूप-दान से आप धूप की सुगन्ध ग्रहण कीजिए। श्रीहरि! मुझे सदा सुगन्धित पुष्पों, धूप एवं गंध से सम्पन्न कीजिए।
दीपदान
दीपदीप्त महादीपं दीपदीप्तिद सर्वदा।
मया दत्तं गृहाण त्वं कुरु चोर्ध्वगतिं च माम॥
विश्वाय विश्वपतये विश्वेशाय नमो नम:।
विश्वादिसम्भवायैव गोविन्दाय निवेदितम॥
हे प्रभो! आप सर्वदा देदीप्यमान एवं दीप को दीप्ति प्रदान करने वाले हैं। मेरे द्वारा दिया गया यह महादीप ग्रहण कीजिए और मुझे भी (दीप के समान) ऊर्ध्वगति से युक्त कीजिए। विश्वरूप, विश्वपति, विश्वेश्वर, श्रीकृष्ण के लिए नमस्कार है, नमस्कार है। विश्व के आदि कारण श्री गोविन्द को मैं यह दीप निवेदित करता हूं।
शयन मन्त्र
धर्माय धर्मपतये धर्मेशाय नमो नम:। धर्मादिसम्भवायैव गोविन्द शयनं कुरु।
सर्वाय सर्वपतये सर्वेशाय नमो नम :। सर्वादिसम्भवायैव गोविन्दाय नमो नम:।
धर्मस्वरूप, धर्म के अधिपति, धर्मेश्वर एवं धर्म के आदिस्थान श्री वासुदेव को नमस्कार है। गोविन्द! अब आप शयन कीजिए। सर्वरूप, सबके अधिपति, सर्वेश्वर, सबके आदि कारण श्री गोविंद को बारंबार नमस्कार है।
इसके बाद रोहिणी सहित चन्द्रमा को मन्त्र पढ़कर अर्घ्य दान दें।
क्षीरोदार्णवसम्भुत अत्रिनेत्रसमुद्धव।
गृहाणार्घ्य शशाक्केदं रोहिण्या सहितो मम॥
क्षीरसमुद्र से प्रकट एवं अत्रि के नेत्र से उद्भुत तेज स्वरुप शशांक, रोहिणी के साथ मेरा अर्घ्य स्वीकार कीजिए।
इसके बाद भगवद्विग्रह को वेदिका पर स्थापित करें और चंद्रमा सहित रोहिणी का पूजन करें। अर्धरात्रि के समय वासुदेव, देवकी, नन्द-यशोदा और बलराम का गुड़ और घृत मिश्रित दुग्ध की धारा से अभिषेक करें।
इसके बाद व्रत करने वाला मनुष्य ब्राह्मणों को भोजन कराए और दक्षिणा में उन्हें वस्त्र और सुवर्ण आदि दे। जन्माष्टमी का व्रत करने वाला पुत्रयुक्त होकर विष्णुलोक का भागी होता है। जो मनुष्य पुत्रप्राप्ति की इच्छा से प्रतिवर्ष इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह ‘पुम’ नामक नरक के भय से मुक्त हो जाता है। (सकाम व्रत करने वाला भगवान गोविन्द से प्रार्थना करे) ‘प्रभो! मुझे धन, पुत्र, आयु, आरोग्य और संतति दीजिए। हे गोविन्द ! मुझे धर्म, काम, सौभाग्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान कीजिए। श्री कृष्ण के जन्म से पूर्व देवताओं ने गर्भस्थ परमेश्वर की स्तुति की थी।