अहमदाबाद। गुजरात यूनिवर्सिटी में आठवें अंतरराष्ट्रीय धर्म धम्म सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि राजनीति में प्रतिनिधि-नेता ही खुद को धर्म से अलग कर रहे हैं, यह गंभीर चिंता का विषय है। राजनीतिक लाभ के लिए लोगों को भटकाना या राष्ट्रीय हित से समझौता करके अपने हितों की पूर्ति करना धर्म के विरुद्ध है।
भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत में 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल संविधान की हत्या थी। धर्म के विरुद्ध अर्थात अपवित्रता कलंकित करने वाली और अस्वीकार्य थी। यह एक ऐसी घटना थी जिसे कभी माफ नहीं किया जा सकता और न ही कभी भुलाया जा सकता है। संविधान की रक्षा और सम्मान करना धर्म है। राजनीति में नेता और प्रतिनिधि धर्म से दूर होते जा रहे हैं, वे अपने कर्तव्य-धर्म का मूल्य नहीं समझ रहे हैं।
राज्यसभा के सभापति के तौर पर सदन के कामकाजी माहौल के बारे में उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज संवाद और चर्चा का अभाव है। मुझे रुकावटों और व्यवधानों के लिए बहुत खेद है। राजनीतिक प्रतिनिधियों द्वारा संविधान के पालन और संवैधानिक कर्तव्यों के साथ पक्षपात करके समझौता किया जा रहा है। आज अपने कर्तव्यों का पालन न करना भी अधर्म है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज धर्म का पालन करना, उसका पोषण करना और उसकी रक्षा करना बहुत जरूरी है। जिस जनता ने नेताओं पर भरोसा किया, उन नेताओं को जनता का विश्वास नहीं तोड़ना चाहिए, यही धर्म है। हमें राष्ट्रीयता और मानवता के विरुद्ध कार्य न करके मानवता बनाए रखनी चाहिए और राष्ट्रीयता अर्थात धर्म को समझना चाहिए। आज सिद्धांतों और नियमों की जरूरत है।