अहमदाबाद/सूरत। आज विश्व गुजराती भाषा दिवस है। जय जय गरवी गुजरात…’ जैसी लोकप्रिय और पुरातन गुजराती कविता के कवि नर्मदाशंकर लालशंकर दवे की आज 191वीं जयंती है। उनकी जयंती हर साल 24 अगस्त को विश्व गुजराती भाषा दिवस के रूप में मनाई जाती है।
सूरत में जन्मे कवि नर्मद केवल 53 वर्ष तक जीवित रहे, लेकिन उन्होंने गुजराती भाषा साहित्य को एक नई दिशा दी। 24 अगस्त 1833 को जन्मे इस कवि ने गुजराती भाषा लेखन की नींव रखी। नर्मद की आत्मकथा ‘मारी हकीकत’ गुजराती साहित्य की पहली आत्मकथा मानी जाती है। नर्मद अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि- वास्तव में, मैं वह नहीं लिखूंगा जो मैं लिखने के बारे में सोचता हूं, बल्कि जो कुछ भी लिखूंगा… मैं अपनी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार सच्चाई से लिखूंगा, चाहे वह मेरे लिए अच्छा हो या मेरे लिए बुरा हो। लोग इसे पसंद करें या नहीं…।’
कवि नर्मद ने 1851-52 में “स्वदेशहितेच्छु’ नामक संस्था की पहल पर ‘ज्ञानसागर’ नामक साप्ताहिक शुरू किया था, लेकिन उसके सफल नहीं होने पर उन्होंने 1864 में “डांडियो’ नामक पाक्षिक शुरू किया। कवि नर्मद ने अपनी पत्रकारिता खुलेपन, ईमानदारी, निडरता और गंभीरता से की। गुजराती साहित्य में आज कवि नर्मद का नाम आज भी उतना ही प्रसिद्ध है, जितना पहले था। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन्होंने गुजराती भाषा के लिए अपना बलिदान दे दिया।
कवि नर्मद ने 1870 के दशक में जब कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, तब
गुजराती भाषा का शब्दकोष बनाने का काम शुरू किया था। आठ साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने इतने ही समय में 25 हजार से ज्यादा शब्दों की एक डिक्शनरी तैयार कर ली थी।