अहमदाबाद। गुजरात हाईकोर्ट ने शहरों में लक्जरी बसों के अवैध प्रवेश और सार्वजनिक सड़कों पर पार्किंग, बिना परमिट के चलने वाले वाहनों, स्कूल में सीएनजी किट पर बैठे बच्चों समेत कई मुद्दों पर यातायात पुलिस, पुलिस प्राधिकरण और आरटीओ अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई। जस्टिस संदीप एन भट्ट ने कहा- थोड़े से आर्थिक लाभ के लिए ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ अधिकारियों की मिलीभगत से निर्दोष नागरिक यातायात समस्याओं से जूझ रहे हैं। हाईकोर्ट ने राज्य के गृह विभाग, ट्रैफिक पुलिस, आरटीओ के जिम्मेदार अधिकारियों को 14 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश देते हुए ट्रैफिक समस्याओं को सुधारने और उस क्षेत्र के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने का निर्देश दिया है। मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पूरे सिस्टम पर बेहद कड़ा प्रहार किया।
हाईकोर्ट ने गृह विभाग के सचिव, परिवहन आयुक्त, डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) आरटीओ, ट्रैफिक पुलिस को यातायात समस्याओं के संबंध में विस्तृत हलफनामा पेश करने का आदेश दिया और साथ में यह भी कहा कि यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए क्या कदम उठाना चाहते हैं।
हाल ही में मेमनगर में पटेल गर्ल्स हॉस्टल और दिव्यपथ हाई स्कूल रोड पर सार्वजनिक सड़कों पर लक्जरी बसों की अंधाधुंध पार्किंग के संबंध में घाटलोडिया के पुलिस इंस्पेक्टर वीडी. मोरी से शिकायत की गई थी। पार्किंग और लग्जरी बसों के शहर में प्रवेश को लेकर पीआई वीडी. मोरी ने बेहद ही बेतुका जवाब दिया था। इंस्पेक्टर मोदी ने कहा था कि- हाईकोर्ट ने ऐसा कब कहा है कि यहां लग्जरी बस खड़ी मत करना। तुम जो कर सकते हो, करा लो। इस बारे में मीडिया में खबरें आने के बाद जस्टिस संदीप एन भट्ट ने इंस्पेक्टर का नाम लिए बैगर सरकारी वकील से साफ शब्दों में कहा कि कानून का पालन कराना पुलिस का वैधानिक कर्तव्य आैर जिम्मेदारी है। अगर उन्हें जिम्मेदारी का एहसास नहीं है तो आपको उन्हें इसका एहसास कराना चाहिए। लग्जरी बसें सड़क पर खड़ी हैं और अगर कोई शिकायत करता है तो स्थानीय पुलिस स्टेशन कहता है कि तुम्हें जहां जाना है जाओ, तो आदमी जाए कहां? आप उसे हटाते क्यों? आप एक न्यायालय अधिकारी हैं, एक नागरिक भी हैं आपको इसकी जानकारी होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति संदीप एन भट्ट ने सरकारी वकील से कहा कि आपके डीसीपी पहले कहते थे कि 1500 स्टाफ 80 लाख की आबादी को नियंत्रित नहीं कर सकते। अगर आपका भी जवाब यही है, तो यह शर्म की बात है। यह आपकी ड्यूटी है इसमें कोई समझौता नहीं होगा। आप अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। डीसीपी के ऐसे जवाब पर हाईकोर्ट ने बेहद गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि आपके लिए लोगों की कोई कीमत नहीं है। थोड़े से आर्थिक लाभ के लिए ट्रैफिक, आरटीओ अधिकारियों की मिलीभत से लोग परेशान होेते हैं, आपको कोई फर्क नहीं पड़ता।
इससे ऐसा लगता कि भ्रष्टाचार अथवा पर्सनल मिलीभगत से यह सब कुछ करने की छूट दी जाती है। शहर में लग्जरी बसों की अवैध पार्किंग पर कार्रवाई क्यों नहीं करते…? ट्रैफिक का नियम है कि बस स्टॉप पर गाड़ी खड़ी नहीं की जा सकती, आप जानते हैं…? तो फिर पार्क क्यों किया जा रहा है? सरकारी वकील के पास हाईकोर्ट के सवालों का कोई जवाब नहीं था। हाईकोर्ट ने राज्य के गृह विभाग के सचिव, राज्य के डीजीपी, ट्रैफिक पुलिस के जिम्मेदार अधिकारियों से उपरोक्त सभी मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगा है। हाईकोर्ट ने 14 अगस्त को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया गया है।
सरकारी वकील ने बचाव करने की कोशिश करते हुए कहा कि यातायात पुलिस द्वारा अभियान चलाया जाता है। न्यायमूर्ति संदीप एन भट्ट ने इसका खंडन करते हुए कहा कि अदालत को आपके अभियान में कोई दिलचस्पी नहीं है, वह कानून के प्रावधानों के अनुपालन में रुचि रखती है। आपको कोर्ट की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.’ हाईकोर्ट को दिखाने के लिए पंद्रह दिन ड्राइव चलाते हो और फिर सब कुछ वैसे ही होने लगता है।