अहमदाबाद। गुजरात सरकार द्वारा कच्छ की मुंद्रा तहसील के नवी नाल गांव में चारागाह की कीमती जमीन अदाणी ग्रुप स्पेशल इकोनॉमिक सेल(SEZ) के रूप में देने पर नया विवाद शुरू हो गया है। इस मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिव प्रणव त्रिवेदी की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार और कच्छ के कलेक्टर को कड़ी फटकार लगाई है। उच्च अदालत ने गुजरात सरकार और कलेक्टर के निर्णय पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि तुम चारागाह की जमीन दूसरे कामों के लिए कैसे दे सकते हो? चारागाह की जमीन दे रहे तो उसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि आप गुजरात सरकार के प्रतिनिधि है, आपको अदाणी की वकालत नहीं करनी चाहिए। आपको अपनी (सरकार की) नीतियों का पालन करना चाहिए और यदि कोई गलती हो तो उसे सुधारना चाहिए।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और कच्छ कलेक्टर की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार का यह फैसला किसी भी तरह से सही या उचित नहीं लगता। कलेक्टर द्वारा जो भी किया गया है वह अवैध है। राज्य सरकार द्वारा गांव से छह से सात किलोमीटर दूर चारागाह की जमीन उपलब्ध कराने का मामला पेश करने पर हाईकोर्ट ने गंभीर नाराजगी जताई और सरकार से पूछा कि क्या चरवाहे और जानवर छह से सात किलोमीटर पैदल चलकर वहां जाएंगे? कच्छ जैसे इलाके में आप ऐसा फैसला कैसे ले सकते हैं? आप गांव की चारागाह भूमि को दूसरे काम के लिए कैसे दे सकते हैं? आपको ऐसा फैसला लेने से पहले गंभीरता से सोचना चाहिए था।
हाईकोर्ट ने सरकार और कच्छ कलेक्टर के विवादित फैसले पर गंभीर नाराजगी जताई और अतिरिक्त महाधिवक्ता को नवी नाल गांव की 107 हेक्टेयर चारागाह भूमि फिर से बहाल करने का निर्देश दिया। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने सरकार की ओर से पेश किए गए हलफनामे को भी मानने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि हमें आश्वासनों की बात करने के बजाय कार्रवाई करनी चाहिए।
कच्छ के कलेक्टर ने अपने बचाव में कहा कि गांव में चारागाह के लिए दूसरी भूमि नहीं है, इसलिए आवंटित नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने कलेक्टर के बचाव को खारिज करते हुए कहा कि आप ऐसा नहीं कह सकते हैं कि हमारे पास चारागाह के लिए दूसरी जमीन नहीं है। आप जब चारागाह की जमीन किसी दूसरे काम के लिए देते हो तो सबसे पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि चारागाह के लिए वैकल्पिक भूमि उपलब्ध है या नहीं। इसकी व्यवस्था करने के बाद ही आपको कोई निर्णय लेना चाहिए।
राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा है, जिसे हाईकोर्ट ने मंजूर कर लिया। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के राजस्व विभाग के मुख्य सचिव और कच्छ कलेक्टर को अलग-अलग हलफनामा पेश करने का निर्देश दिया है।