लखनऊ। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि प्रभु श्रीराम की मूर्ति को इस प्रकार से बनाया गया है कि प्रत्येक वर्ष रामनवमी को भगवान सूर्यदेव स्वयं श्रीराम का अभिषेक करेंगे। भारत के विख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर प्रभु श्रीराम की मूर्ति की लंबाई और उसे स्थापित करने की ऊंचाई को इस प्रकार से रखा गया है कि हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें प्रभु श्रीराम की मूर्ति के ललाट पर पड़ेंगी। मूर्ति की पैर से लेकर ललाट तक की लंबाई 51 इंच है और इसका वजन डेढ़ टन है। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा पूजा विधि को 16 जनवरी से शुरू कर दिया जाएगा। 18 जनवरी को गर्भगृह में प्रभु श्रीराम की मूर्ति को आसन पर स्थापित कर दिया जाएगा। प्रभु श्रीराम की मूर्ति की एक विशेषता यह भी है कि इसे अगर जल और दूध से स्नान कराया जाएगा तो इसका नकारात्मक प्रभाव पत्थर पर नहीं पड़ेगा। अगर कोई उस जल या दूध का आचमन करता है तो शरीर पर भी इसका दुष्प्रभाव नहीं होगा। राममंदिर परिसर में ही महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषाद राज, माता शबरी और देवी अहिल्या का भी मंदिर बनाया जाएगा। इसके अलावा जटायु की प्रतिमा को यहां पहले से ही स्थापित कर दिया गया है। ट्रस्ट की ओर से बताया गया कि 22 जनवरी को देशभर के पांच लाख मंदिरों में भव्य पूजन अर्चन होगा और उल्लास मनाया जाएगा। शाम को हर सनातनी अपने घर के बाहर कम से कम पांच दीपक अवश्य जलाएं। 26 जनवरी के बाद ही लोग अयोध्या में राम लला का दर्शन के लिए आएं। मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया कि जब तक सभी लोग दर्शन नहीं कर लेंगे तब तक मंदिर के कपाट खुले रहेंगे।