कच्छ। धोलावीरा से 50 किलोमीटर दूर लोद्राणी गांव में एक टीले के नीचे खजाना गड़े होने का अनुमान लगाया जा रहा था। लोगों ने खुदाई की तो वहां जो सामान निकला वह सोने से भी ज्यादा कीमती है। ग्रामीणों को खुदाई के दौरान हड़प्पा सभ्यता की एक किलेमुना बस्ती और बर्तन मिले हैं।
इसकी जानकारी एएसआई के पूर्व एडीजी और पुरातत्वविद् अजय यादव को दे दी गई है। अजय यादव ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी में रिसर्च स्कॉलर हैं। अजय यादव और उनके साथ ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के प्रोफेसर डेमियन रॉबिन्सन कच्छ पहुंचे और साइट का दौरा किया।
इस नए पुरातात्विक स्थल की संरचना धोलावीरा के जैसे ही है। यहां से कई अवशेष मिले हैं, जो हड़प्पा सभ्यता के हैं। ग्रामीण इस पथरीले टीले पर कोई ध्यान नहीं दे रहे थे। गांव वालों ने एक दिन विचार-विमर्श किया कि टीले के नीचे किला है और उसमें बहुत बड़ा खजाना छिपा हुआ है। जब इसकी खुदाई की गई तो हड़प्पा सभ्यता की बस्ती मिली। यहां 4500 साल पहले पूरा शहर बसा था। जनवरी में इसकी खोज की गई और इसका नाम “मोरोधरा’ रखा गया है। मोरोधरा का अर्थ होता है “मोरों का स्थान’।
पुरातात्विक स्थल का समय हड़प्पा काल (2,600-1,900 ईसा पूर्व) (1,900-1,300 ईसा पूर्व) बताया जाता है। स्थल की विस्तृत जांच और
खुदाई से कई और महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी। इस विरासत स्थल के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मोरोधरा और धोलावीरा दोनों समुद्र पर निर्भर थे। यह स्थल रेगिस्तान के बहुत करीब है।
1967-68 में पुरातत्ववेत्ता जेपी. जोशी ने धोलावीरा के 80 किलोमीटर के दायरे में सर्वेक्षण किया तो धोलावीरा के अवशेष मिले थे। उन्होंने इसके आसपास हड़प्पा सभ्यता के अवशेष होने की आशंका जताई थी। हालांकि उस समय कोई ठोस सबूत नहीं मिले थे। साल 1989 से 2005 के बीच धोलावीरा की खुदाई के दौरान पुरातत्व की टीम ने आसपास के इलाकों का सर्वे किया था, तक कुछ नहीं मिला। अब जब ग्रामीणों ने खजाने की खोज शुरू की तो हड़प्पा काल के अवशेष मिल रहे हैं।