बागपत। कब्रस्तान और लाक्षागृह विवाद पर कोर्ट ने हिन्दु पक्ष में अपना फैसला सुनाया है। यहां के बरनावा गांव में प्राचीन टीले को लेकर दोनों पक्षों में विवाद चल रहा था। 1970 से यह मामला कोर्ट में लंबित था। अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि यह विवादित जमीन और टीला लाक्षागृह है। महाभारत में लाक्षागृह का वर्णन मिला है। इसे पांडवों को जीवित जलाने के लिए बनाया गया था। वहीं, दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष टीले पर बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रस्तान होने का दावा कर रहा था। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वह इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे और अपने पक्ष को और मजबूती से रखेंगे।
बरनावा गांव में रहने वाले मुकीद खान ने 1970 में मेरठ की अदालत में मुकादमा किया था। उन्होंने ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया था। मुकदमे में बरनावा के प्राचीन टीले को शेख बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रस्तान बताया गया था। यह सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में भी पंजीकृत है। अदालत में दायर याचिका में कहा गया था कि कृष्णदत्त महाराज इसे हिन्दुओं का तीर्थस्थान बनाना चाहते हैं। पूरे मामले को बागपत की अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया था। वहीं, दूसरी ओर प्रतिवादी ने दावा किया था कि यह दरगाह नहीं बल्कि लाक्षागृह है। इसे पांडवों को जिंदा जलाने के लिए बनाया गया था। महाभारत में भी इसका उल्लेख किया गया है। इसमें बने सुरंग, प्राचीन दीवारों से भी यह साबित होता है। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया है।
अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि बरनावा का प्राचीन टीला न तो कब्रस्तान है, न दरगाह, वहां तो लाक्षागृह है। बता दें, टीम की कुछ जमीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के कब्जे में है। शेष भूमि पर गांधी धाम समिति श्री महानंद संस्कृत विद्यालय चला रहा है।